अज़ल और जिया: प्यार, नफरत और एक नई ज़िंदगी की शुरुआत "कभी-कभी, नफरत के बीज से भी प्यार का फूल खिल सकता है। लेकिन जब अंधेरा उस फूल को मुरझाने पर मजबूर कर दे, तब क्या होगा?" शादी के बाद अज़ल और जिया के बीच हर दिन तकरार होती थी। जिया ने कभी नहीं चाहा था कि वह अज़ल के साथ रहे। वह मजबूरी में बंधी थी, और अज़ल को भी यह रिश्ता किसी सजा से कम नहीं लगता था। लेकिन, न चाहते हुए भी वे एक-दूसरे के करीब आने लगे थे। एक रात, अज़ल पार्टी से लौटा तो जिया कमरे में बैठी थी। वह अपनी जगह से उठने ही वाली थी कि अज़ल ने दरवाजा बंद कर दिया। "कहाँ जा रही हो?" "तुम्हारी कोई भी बात सुनना मेरी ज़रूरत नहीं है," जिया ने ठंडे स्वर में कहा। अज़ल ने उसकी कलाई पकड़ ली। "सिर्फ सुनना नहीं, समझना भी ज़रूरी है।" जिया ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अज़ल ने उसे पास खींच लिया। उनकी साँसें आपस में उलझने लगीं। "तुम क्या चाहते हो?" जिया ने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ में गुस्सा और डर दोनों थे। अज़ल ने बिना हिचक कहा, "तुम्हें... तुम्हारी हर नफरत के बावज...
सुबह की शुरुआत रात के उन अनकहे पलों को याद करके जिया के होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई। पहली बार उसे अज़ल का चेहरा मासूम लगा। वह उसे कुछ देर तक देखती रही, जैसे किसी अनजाने एहसास को समझने की कोशिश कर रही हो। लेकिन यह एहसास कितना सही था, वह नहीं जानती थी। वह धीरे से बिस्तर से उठी और किचन की तरफ बढ़ गई। किचन में हल्की रोशनी थी। सुबह की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी। जिया ने गैस जलाया और नाश्ता बनाने लगी। "तुम्हें यह सब करने की जरूरत नहीं है," अज़ल की भारी आवाज़ उसके पीछे से आई। जिया ने पलटकर देखा। वह अब तक सोया हुआ था, लेकिन अब उसकी आँखों में हल्की सी जिज्ञासा थी। "मुझे अच्छा लगता है," जिया ने हल्के से कहा। "तुमने नाश्ता किया?" "तुम नौकरों को क्यों नहीं बुलाती?" अज़ल ने कहा, उसकी आवाज़ में अभी भी वही कठोरता थी। "क्योंकि मैं चाहती हूँ कि यह नाश्ता खास हो," जिया ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया। अज़ल ने पहली बार महसूस किया कि जिया की मुस्कान में एक अजीब सा सुकून था, जो नफरत और दर्द से परे था। अंधेरा जो फिर से जागा दिन स...