बाबा त्रिलोक, जो गाँव के सबसे बुजुर्ग और अनुभवी व्यक्ति थे, भी वहाँ मौजूद थे। वो अपनी छड़ी के सहारे धीरे-धीरे चल रहे थे। चौक पर पहुँचकर उन्होंने सभी को एक जगह बैठने के लिए कहा।
शादी की तैयारी के दौरान, बाबा त्रिलोक ने कुछ अजीब घटनाएँ नोटिस की थीं। उन्होंने महसूस किया कि हवा में अचानक ठंडक बढ़ गई है, जो इस मौसम में असामान्य थी। उन्होंने पक्षियों की अजीब सी आवाज़ें सुनीं और हवा में एक अजीब सी गंध महसूस की। ये सभी संकेत उनकी पुरानी पोथी में वर्णित घटनाओं से मिलते-जुलते थे।
इसलिए, जब उन्होंने देखा कि शादी की रात में ये संकेत और स्पष्ट हो रहे हैं, तो उन्हें समझ में आ गया कि कुछ गलत होने वाला है। उन्होंने गाँव वालों को शादी में शामिल होने से पहले ही सतर्क रहने की चेतावनी दी थी, लेकिन किसी ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया।
शादी की रात जैसे-जैसे नजदीक आ रही थी, बाबा त्रिलोक का दिल तेजी से धड़कने लगा। उन्हें इस बात का डर था कि कहीं उनकी पोथी में लिखी भविष्यवाणी सच ना हो जाए। गाँव के लोग शादी की खुशियों में मग्न थे, और बाबा त्रिलोक के दिल में एक अनजान भय था।
जैसे ही रात घनी हो गई और बारात दिखाई देने लगी, बाबा त्रिलोक की चिंता बढ़ती गई। उन्होंने अपने अनुभव और पोथी के ज्ञान के आधार पर तुरंत पहचान लिया कि ये कोई सामान्य बारात नहीं है। उन्होंने तुरंत गाँव वालों को सतर्क करने का फैसला किया।
बाबा त्रिलोक: (बोलते हुए) "सब लोग ध्यान से सुनो, आज की रात कुछ खास है। हमें इस शादी में पूरी सावधानी बरतनी होगी।"
जैसे ही रात घनी होने लगी, अचानक ठंडी हवा चलने लगी। सभी लोग हल्की ठंड महसूस करने लगे। उसी समय, एक औरत ने दूर से आ रही बारात की ओर इशारा किया।
महिला: (चिल्लाते हुए) "देखो, बारात आ रही है!"
सभी ने उस दिशा में देखा और हैरान रह गए। सफेद कपड़े पहने हुए लोग, जिनके हाथों में मशालें थीं, धीरे-धीरे गाँव की ओर बढ़ रहे थे। उनके चेहरे अस्पष्ट थे और एक अजीब सी चमक थी।
गाँववासी: (भयभीत होकर) "ये तो हमारी बारात नहीं है! ये कौन लोग हैं?"
बाबा त्रिलोक ने अपनी छड़ी जमीन पर ठोकते हुए सभी को शांत कराया।
बाबा त्रिलोक: (गंभीर आवाज में) "ये कोई साधारण बारात नहीं है। ये भूतों की बारात है। हमने गलती से उनकी सीमा में प्रवेश कर लिया है। हमें यहाँ से तुरंत निकलना चाहिए।"
लोगों के चेहरों पर डर और घबराहट साफ दिखाई दे रही थी। बाबा त्रिलोक ने सभी को हाथ के इशारे से पास बुलाया और फुसफुसाते हुए कहा, "कोई भी अपनी असली पहचान मत दिखाना। हमें इनके जैसा व्यवहार करना होगा, नहीं तो हम फँस जाएँगे।"
भूतों की बारात ने गाँव में प्रवेश किया और चौक पर रुक गई। बारात का मुखिया, जो एक लम्बा और डरावना आदमी था, आगे बढ़ा। उसकी आँखें चमक रही थीं और उसकी आवाज़ में एक रहस्यमयी गूँज थी।
मुखिया: (हँसते हुए) "स्वागत है, हमारे भूतों की शादी में। आप सभी हमारे मेहमान हैं। आज रात की यह शादी विशेष है।"
लोगों ने डर से एक-दूसरे को देखा, लेकिन बाबा त्रिलोक के संकेत पर सभी ने दिखावे के लिए हँसते हुए उनका स्वागत किया। शादी की तैयारी शुरू हुई। सभी ने देखा कि दुल्हन सफेद लिबास में थी और उसके चेहरे पर घूँघट था।
शादी की रस्में शुरू हुईं। एक अजीब सा संगीत बजने लगा। माहौल में अजीब सी खामोशी और डरावनी ठंडक फैल गई थी। सभी गाँव वाले चुपचाप उस दृश्य को देख रहे थे।
तभी, मुखिया ने दुल्हन का घूँघट उठाया। जैसे ही घूँघट उठा, सबके होश उड़ गए। दुल्हन का चेहरा पूरी तरह जल चुका था, उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं और वह भयानक हँसी हँस रही थी।
दुल्हन: (भयावह हँसी के साथ) "आप सबका धन्यवाद, इस शादी में शामिल होने के लिए। अब आप सभी हमारे साथ हमारे संसार में चलेंगे।"
गाँव वाले डर से कांपने लगे। कुछ लोग बेहोश हो गए, तो कुछ ने चिल्लाना शुरू कर दिया। बाबा त्रिलोक ने स्थिति को समझते हुए तुरंत अपने पास रखी तुलसी की माला निकाली और मंत्र पढ़ने लगे।
बाबा त्रिलोक के मंत्र पढ़ने के साथ ही एक तेज़ रोशनी चारों ओर फैल गई। भूतों की बारात अचानक गायब हो गई और सभी लोग चौक पर गिर गए। सब कुछ अंधेरे में डूब गया। जब अगली सुबह हुई, तो गाँव वाले खुद को चौक पर पाया।
लोग एक-दूसरे को देखकर हैरान थे कि आखिर रात में क्या हुआ था। सभी बाबा त्रिलोक के पास गए।
गाँववासी: (घबराए हुए) "बाबा, ये सब क्या था? वो भूत थे या हमारा वहम?"
बाबा त्रिलोक: (गंभीरता से) "ये कोई सपना नहीं था। ये भूतों की बारात थी, जो गलती से हमारी दुनिया में आ गई थी। हम सभी को सावधान रहना चाहिए और ऐसी गलती फिर कभी नहीं करनी चाहिए।"
जब सभी लोग अपने घर लौटे, तो बाबा त्रिलोक ने अपने घर की दीवार पर कुछ देखा। वहाँ एक पुरानी तस्वीर लगी थी, जिसमें वही भूतों की बारात की दुल्हन और बाकी लोग थे। तस्वीर के नीचे लिखा था, "हम फिर आएँगे।"
यह देखकर सभी के रोंगटे खड़े हो गए। बाबा त्रिलोक ने तस्वीर की ओर देखा और गहरी साँस लेकर बोले, "शायद ये अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। हमें हमेशा तैयार रहना होगा।"
इस अप्रत्याशित मोड़ ने सभी को भय और अचंभे में डाल दिया। गाँव शिवपुर के लोग इस घटना को कभी नहीं भूल पाए और बाबा त्रिलोक की उस रात की सीख हमेशा याद रखी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें