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भूतिया ट्रेन का आखिरी सफ़र भाग-1

शाम के धुंधलके में पुराना, जर्जर "शांतिवन स्टेशन" बिलकुल सुनसान पड़ा था। चारों ओर फैली वीरानी, टूटी-फूटी पटरियाँ, और उजाड़ पड़ी इमारतें इस बात की गवाह थीं कि यहाँ बरसों से कोई ट्रेन नहीं रुकी थी। सन्नाटे को चीरती हुई ठंडी हवा सरसराती थी, मानो किसी अंजाने खौफ की दस्तक दे रही हो। तभी स्टेशन के बाहर एक जीप आकर रुकी। उसमें से राघव और उसकी टीम के तीन अन्य सदस्य — शेखर, नीलिमा, और मनीष — उतरे। वे सभी हैरानी और रोमांच से स्टेशन की हालत को देख रहे थे।
“यार, ये तो सच में बहुत ही डरावना है। हम सच में इस स्टेशन पर रात बिताने वाले हैं?” मनीष ने घबराते हुए पूछा।

“हम यहाँ डरने नहीं, सच्चाई जानने आए हैं,” राघव ने कड़क आवाज़ में कहा, “ये लोग कहते हैं कि ये ट्रेन अब भी हर पूर्णिमा की रात यहाँ से गुजरती है। और आज वो रात है, जब हमें सच्चाई का सामना करना है।”

“लेकिन ये स्टेशन… ये जगह… इतनी अजीब और खौफनाक क्यों है?” नीलिमा ने कंपकंपाती आवाज़ में कहा, उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था
राघव ने इमारत की ओर इशारा करते हुए कहा, “नीलिमा, कभी ये स्टेशन बहुत ही व्यस्त हुआ करता था। लेकिन 20 साल पहले जो हादसा हुआ, उसने सब कुछ बदल दिया। एक रात, इस स्टेशन से ‘अंतिम यात्रा एक्सप्रेस’ निकली थी, लेकिन वो वापस कभी नहीं आई। ट्रेन और उसमें सफर कर रहे लोग कहां गए, कोई नहीं जानता। और उस हादसे के बाद, इस स्टेशन को बंद कर दिया गया।”

शेखर, जो अब तक खामोशी से सब सुन रहा था, बोला, “सुना है कि उस रात ट्रेन में बैठे सभी लोग मारे गए थे। और तब से इस ट्रेन की आत्माएं आज भी यहीं भटकती हैं। इस स्टेशन पर जो भी रुकता है, वो… कभी वापस नहीं आता।”

सबकी नजरें एक-दूसरे से मिलती हैं, मानो वे सोच रहे हों कि क्या उन्होंने सही फैसला किया है। लेकिन राघव ने सबको हिम्मत बंधाते हुए कहा, “हमें डरने की जरूरत नहीं है। ये सिर्फ अफवाहें हैं, और हम आज इन अफवाहों की सच्चाई जानने आए हैं। चलो, अंदर चलते हैं।”
वे सब स्टेशन की पुरानी बिल्डिंग में दाखिल होते हैं। इमारत के अंदर घुसते ही एक अजीब सी सर्दी का एहसास होता है, मानो वहां की हवा में कोई सिहरन हो। हर कदम पर लकड़ी की सीढ़ियों की चरमराहट गूंज उठती है, और दीवारों पर लगी दरारों से झांकती परछाइयाँ मानो उन्हें घूर रही थीं।

“ये जगह इतनी ठंडी क्यों है? बाहर तो इतनी ठंड नहीं थी,” नीलिमा ने चौंकते हुए कहा।

“शायद ये सिर्फ हमारा वहम है,” राघव ने जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज़ में भी हल्का सा डर था।
वे सब एक पुराने कमरे में जाते हैं, जहां स्टेशन मास्टर बैठा करता था। राघव ने कमरे का दरवाजा खोला तो उसमें बिखरे कागज, धूल और टूटे-फूटे फर्नीचर थे। एक कोने में दीवार पर एक पुराना कैलेंडर लटका हुआ था, जिस पर 20 साल पहले की तारीख और समय दर्ज था। वह तारीख वही रात थी, जब ट्रेन गायब हुई थी।
“इस जगह को देखो… जैसे समय यहीं रुक गया हो,” शेखर ने बुदबुदाते हुए कहा।

तभी अचानक, एक खिड़की तेज आवाज के साथ खुलती है और कड़क ठंडी हवा का झोंका कमरे में आता है। सब चौंक कर पीछे हटते हैं। मनीष ने अपने कैमरे को तैयार करते हुए कहा, “मैं इस सब को रिकॉर्ड कर रहा हूँ। अगर कुछ अजीब होता है, तो हमें सबूत के तौर पर ये सब दिखाना होगा।”

राघव ने सिर हिलाया, “ठीक है, कैमरा चालू रखो। हमें हर चीज की जानकारी इकट्ठा करनी होगी। हमें यहाँ रात बितानी है, ताकि हम देख सकें कि क्या सच में वो ट्रेन यहाँ आती है।”
सबके चेहरे पर तनाव और डर साफ दिख रहा था, लेकिन उन्होंने हिम्मत जुटाई और स्टेशन के वेटिंग हॉल में चले गए, जो अब एक खंडहर बन चुका था। घड़ी में रात के 11 बजने वाले थे। स्टेशन के चारों ओर अंधेरा फैल चुका था। सिर्फ उनकी टॉर्च की रोशनी ही थी, जो कभी-कभी टूटे-फूटे सामान और वीरान पटरियों पर पड़ रही थी।
“अब क्या?” नीलिमा ने धीरे से पूछा।

“हम यहीं रुकेंगे, और देखेंगे कि क्या होता है। हमें आधी रात तक का इंतजार करना होगा,” राघव ने कहा।

रात के बारह बजने में कुछ ही मिनट बचे थे। अचानक, चारों ओर अजीब सी चुप्पी पसर गई। हवा भी रुक गई थी, और जैसे ही घड़ी ने 12 बजने का संकेत दिया, दूर से एक धीमी सी, लेकिन साफ-साफ सुनाई देने वाली ट्रेन की सीटी की आवाज आई।
“ये… ये आवाज… सच में ट्रेन की है?” मनीष ने हड़बड़ाते हुए कहा।
“मुझे नहीं पता… लेकिन ये बिल्कुल वैसी ही आवाज है,” राघव ने अचंभित होकर कहा।
सब ध्यान से पटरियों की ओर देखते हैं। अचानक, धुंध में से ट्रेन की लाइट चमकती हुई दिखाई देती है। ट्रेन धीरे-धीरे स्टेशन की ओर बढ़ रही थी। लेकिन यह कोई साधारण ट्रेन नहीं थी। इसके डिब्बे धुंधले और काले साए जैसे दिख रहे थे, और इंजन से अजीब सी धुआँधार रोशनी निकल रही थी, जो हवा में घुलते हुए भूतिया परछाइयाँ बना रही थी।

“भगवान! ये क्या है?” शेखर ने चीखते हुए कहा।

“ये वही ट्रेन है… ‘अंतिम यात्रा एक्सप्रेस’,” राघव ने घबराते हुए कहा। “हम इसे रिकॉर्ड करना होगा!”

मनीष ने कैमरे का लेंस ट्रेन की ओर किया, लेकिन जैसे ही उसने ट्रेन को रिकॉर्ड करना शुरू किया, कैमरे की स्क्रीन ब्लर होने लगी, और एक झटके में कैमरा बंद हो गया।
“ये क्या हो रहा है? कैमरा क्यों बंद हो गया?” मनीष ने घबराते हुए कहा।
तभी ट्रेन की खिड़कियों में अजीब आकृतियाँ नजर आने लगीं — साये, जो इंसानों की तरह दिख रहे थे। उनके चेहरे अस्पष्ट थे, लेकिन उनकी आँखों में एक चमक थी, जैसे वे सबको अंदर बुला रहे हों। ट्रेन धीरे-धीरे प्लेटफार्म पर रुक गई। ट्रेन के दरवाजे अपने-आप खुल गए, और ठंडी हवा का एक झोंका बाहर आया, मानो कोई अदृश्य शक्ति सबको अंदर खींचने की कोशिश कर रही हो।

“मुझे नहीं लगता कि हमें अंदर जाना चाहिए…” नीलिमा ने डरते हुए कहा।

“लेकिन हमें ये जानना होगा कि अंदर क्या है,” राघव ने कहा। उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास था, लेकिन अंदर से वह भी डरा हुआ था।

“अगर ये ट्रेन सच में भूतिया है, तो…” शेखर ने कहा, लेकिन उसके बोलते ही ट्रेन की लाइट्स एक झटके में जल उठीं, और खिड़कियों के पीछे खड़ी आकृतियाँ चलने लगीं, मानो वे बाहर आने की कोशिश कर रही हों।

“चलो… हमें इस ट्रेन में चढ़ना चाहिए…” राघव ने कहा, और धीरे-धीरे ट्रेन की ओर बढ़ा।
जैसे ही राघव ने ट्रेन के दरवाजे को छुआ, उसे ऐसा महसूस हुआ, जैसे कोई ठंडी सी चीज़ उसकी उंगलियों के पास सरक रही हो। उसने दरवाजे को धक्का दिया, और जैसे ही दरवाजा खुला, एक भयानक चीत्कार ट्रेन के अंदर से गूंजा। सबके कानों में वो आवाज गूंजने लगी, और वे अपने-आप को पीछे खींचने लगे।

“राघव! अंदर मत जाओ! ये सही नहीं है…” मनीष ने चिल्लाते हुए कहा।
लेकिन राघव ने कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अंदर कदम रखा, और उसके साथ ही बाकी लोग भी मजबूरन अंदर आ गए। अंदर घुसते ही, सबने महसूस किया कि ट्रेन का माहौल एकदम ठंडा और सिहरन भरा था। हर डिब्बा एक खाली परछाईं की तरह लग रहा था, और वहां की सीटों पर बैठे यात्रियों की धुंधली परछाइयाँ दिखाई दे रही थीं।
“ये… ये सब क्या है?” नीलिमा ने घबराते हुए कहा।
तभी, एक सीट से कोई आकृति अचानक हिलती हुई नजर आई। वो एक इंसान की तरह दिख रही थी, लेकिन उसका चेहरा अस्पष्ट था, मानो धुंध में घुला हो। सबकी साँसें थम गईं। नीलिमा ने कांपते हुए राघव का हाथ पकड़ा और घबराई आवाज़ में फुसफुसाई, “राघव… हमें… हमें यहां से बाहर निकलना चाहिए।”

“ठहरो… हमें इसकी रिकॉर्डिंग करनी होगी,” राघव ने अपने डर पर काबू पाने की कोशिश करते हुए कहा। लेकिन उसकी आवाज़ में भी कंपन था।

तभी, उस धुंधली आकृति ने धीरे-धीरे अपना सिर घुमाया और उसकी आँखें सीधे राघव की ओर देख रही थीं। उसकी आँखों में कोई पुतलियां नहीं थीं, बस एक काला खालीपन था, मानो कोई गहरा कुआँ हो। एक पल के लिए वो आकृति स्थिर रही, और फिर अचानक, एक भयानक चीख के साथ उसकी काली आँखों से लाल चमक निकलने लगी।
“बाहर चलो!” शेखर ने चीखते हुए कहा, लेकिन उसके कदम पीछे नहीं बढ़े। ऐसा लगा जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने सबके पैरों को वहीं जकड़ दिया हो।

तभी, ट्रेन का दरवाजा अचानक ज़ोर से बंद हो गया। दरवाजे की आवाज़ इतनी तेज़ थी कि सबके दिलों की धड़कनें मानो रुक गईं। अब ट्रेन का हर दरवाजा बंद हो चुका था, और बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं था।

“ये… ये दरवाजा बंद कैसे हो गया?” मनीष ने डरते हुए पूछा। उसकी आँखों में घबराहट साफ नजर आ रही थी। वह दरवाजे को ज़ोर से धक्का देने की कोशिश कर रहा था, लेकिन दरवाजा जरा भी नहीं हिला।

“कोई फायदा नहीं… अब हम फंस चुके हैं…” राघव ने धीमी, डरी हुई आवाज़ में कहा।
तभी, एक औरत की धीमी हंसी ट्रेन के अंदर गूंजने लगी। सबने मुड़कर देखा, तो उन्हें डिब्बे के आखिरी कोने में एक साया खड़ा नजर आया। वो औरत के आकार का था, लेकिन उसका चेहरा एक अजीब सी धुंध से ढका हुआ था। उसकी हंसी मानो हवा में तैर रही थी, और उसकी आँखें भी काले खालीपन से भरी हुई थीं। धीरे-धीरे, वह साया आगे बढ़ने लगा।

“वो… वो हमारी तरफ आ रही है!” नीलिमा ने घबराते हुए कहा। उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें साफ दिखाई दे रही थीं।

“कोई मत हिले… हमें इसका सामना करना होगा…” राघव ने खुद को शांत करने की कोशिश करते हुए कहा। लेकिन उसकी आँखों में डर साफ झलक रहा था।

तभी, वो औरत का साया तेजी से आगे बढ़ा और मनीष के ठीक सामने आकर रुक गया। मनीष की आँखें डर से फटी रह गईं। उसने एक भी शब्द नहीं बोला। वो साया मनीष के चेहरे के करीब झुका, और उसके चेहरे को छूने की कोशिश करने लगा। मनीष ने हड़बड़ाते हुए अपना सिर पीछे खींचा, लेकिन तभी उस साये ने उसके गले के पास अपने ठंडे हाथ रख दिए। मनीष को ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई बर्फ की सलाख उसके गले में चुभ रही हो।

“मनीष! उससे दूर हो!” शेखर ने चिल्लाते हुए कहा, लेकिन कुछ करने में असमर्थ था।

तभी, मनीष का शरीर अकड़ने लगा। उसकी आँखें उलट गईं, और एक अजीब सी आवाज़ उसके गले से निकलने लगी। मानो वो दर्द में हो, पर कुछ बोल न पा रहा हो। अचानक, मनीष के पूरे शरीर पर काले निशान बनने लगे, और उसकी चमड़ी में खून की लाल धारियाँ उभरने लगीं। वो साया अब मनीष की आत्मा को खींच रहा था।

“राघव… बचाओ… मुझे…” मनीष ने दर्द से चिल्लाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में कातरता थी।

राघव और बाकी सबने मनीष की मदद करने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही वे आगे बढ़े, ट्रेन की सीटें अपने-आप हिलने लगीं, और उनकी तरफ बढ़ने लगीं। सीटों की स्प्रिंग्स और लोहे की छड़ें उनके पैरों में उलझने लगीं, मानो ट्रेन खुद उन्हें रोकना चाहती हो।

“ये ट्रेन… ये जिंदा है!” शेखर ने हांफते हुए कहा। उसका चेहरा डर से सफेद पड़ गया था।

“हमें यहां से निकलना होगा… कुछ भी करके!” नीलिमा ने लगभग रोते हुए कहा।

लेकिन उनके लिए भागना असंभव था। ट्रेन के अंदर की सभी खिड़कियाँ काले पर्दों से ढकी हुई थीं, और हर दरवाजा मजबूती से बंद था। तभी, ट्रेन एक झटके से हिलने लगी, और उसके इंजन से एक अजीब सी धुआंदार रोशनी निकलने लगी। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी, मानो कोई अदृश्य शक्ति उसे चला रही हो।
“ये ट्रेन… ये जिंदा है!” शेखर ने हांफते हुए कहा। उसका चेहरा डर से सफेद पड़ गया था।

“हमें यहां से निकलना होगा… कुछ भी करके!” नीलिमा ने लगभग रोते हुए कहा।
लेकिन उनके लिए भागना असंभव था। ट्रेन के अंदर की सभी खिड़कियाँ काले पर्दों से ढकी हुई थीं, और हर दरवाजा मजबूती से बंद था। तभी, ट्रेन एक झटके से हिलने लगी, और उसके इंजन से एक अजीब सी धुआंदार रोशनी निकलने लगी। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी, मानो कोई अदृश्य शक्ति उसे चला रही हो।
“हम… हम चल रहे हैं!” राघव ने चौंकते हुए कहा।

“लेकिन ये कैसे हो सकता है? ये ट्रेन तो कबाड़ बन चुकी थी!” शेखर ने भयभीत स्वर में कहा।

“ये कोई साधारण ट्रेन नहीं है…” राघव ने कहा, उसकी आँखें अब भी उस धुएँ में खोई हुई थीं, जो धीरे-धीरे इंसानी शक्ल में तब्दील हो रहा था। “ये ट्रेन… वो ट्रेन है, जिसने अपनी अंतिम यात्रा पूरी नहीं की थी। ये हमें… उसी यात्रा पर ले जा रही है…”

“कहां? कहां ले जा रही है ये हमें?” नीलिमा ने कांपते हुए पूछा।

“शायद… वहीं, जहां इसके सभी यात्री… मर चुके हैं।” राघव ने डरते हुए कहा।
और उसी पल, ट्रेन की स्पीड बढ़ने लगी। खिड़कियों से बाहर का दृश्य अब अजीबो-गरीब साये और परछाइयों से भरने लगा। मानो ट्रेन किसी और ही दुनिया में प्रवेश कर रही हो। हर खिड़की पर अब अनजाने चेहरों की परछाइयाँ चिपकी हुई थीं, जो अंदर झांकने की कोशिश कर रही थीं।

“हमें… हमें कुछ करना होगा! वर्ना हम सब… मारे जाएंगे!” मनीष की आवाज़ अब बहुत धीमी हो चुकी थी, और उसकी साँसे टूट रही थीं।

तभी, एक तेज़ झटके के साथ ट्रेन पूरी रफ्तार से चलने लगी। सभी सीटें और डिब्बे के सामान इधर-उधर बिखरने लगे। राघव ने देखा कि मनीष अब पूरी तरह से बेहोश हो चुका था, और उस साये ने उसका शरीर छोड़ दिया था।

“नीलिमा, शेखर… हमें इसे रोकना होगा। हमें ये ट्रेन रोकनी होगी!” राघव ने हिम्मत जुटाते हुए कहा।

“कैसे? हम… हम क्या कर सकते हैं?” शेखर ने बौखलाते हुए कहा।

““इंजन के पास चलो… शायद वहाँ कोई तरीका हो इसे रोकने का…” राघव ने कहा।

लेकिन जैसे ही वे सब इंजन की ओर बढ़ने लगे, डिब्बे की सारी लाइट्स अचानक बुझ गईं। अब ट्रेन के अंदर बस घना अंधेरा था। हर तरफ से आवाजें गूंजने लगीं — चिल्लाहटें, हंसी, और रोने की आवाजें।

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