पिछली कड़ी में:
राघव, नीलिमा, शेखर, और मनीष एक पुरानी सुरंग के अंदर प्रवेश कर चुके हैं, जहां उन्हें 'अंतिम यात्रा एक्सप्रेस' के बारे में पता चला। सुरंग में प्रवेश करने के बाद, उन्हें एक रहस्यमयी ट्रेन दिखाई दी, जो बिना किसी पटरियों के हवा में तैर रही थी। जैसे ही वे ट्रेन के अंदर पहुंचे, दरवाजे अपने आप बंद हो गए और उन्हें एहसास हुआ कि वे किसी अनजानी दुनिया में फंस चुके हैं। अब उनके सामने सिर्फ एक ही रास्ता है – इस भयानक ट्रेन के इंजन की ओर बढ़ना और इसका रहस्य सुलझाना
जैसे ही वे सब इंजन की ओर बढ़ने लगे, डिब्बे की सारी लाइट्स अचानक बुझ गईं। अब ट्रेन के अंदर बस घना अंधेरा था। हर तरफ से आवाजें गूंजने लगीं — चिल्लाहटें, हंसी, और रोने की आवाजें।
"ये... ये क्या हो रहा है?" नीलिमा ने घबराते हुए कहा।
"शांत रहो, नीलिमा। ये हमें डराने की कोशिश कर रहे हैं।" राघव ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में भी एक डर की झलक साफ सुनाई दे रही थी।
अचानक, एक तेज़ हवा का झोंका आया, और ट्रेन के दरवाजे अपने आप खुलने-बंद होने लगे। सीटों पर बिखरी हुई चीज़ें एकाएक हवा में उठ गईं, मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें अपने वश में कर लिया हो।
"ये ट्रेन सच में जिंदा है!" शेखर ने कांपते हुए कहा।
"हमें एक-दूसरे का हाथ पकड़कर इंजन की तरफ बढ़ना होगा। अगर हम अलग हो गए, तो ये ट्रेन हमें अपने अंदर समा लेगी।" राघव ने सबको एकजुट करते हुए कहा।
वे सब एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ने लगे। हर कदम के साथ फर्श से अजीब-सी आवाज़ें आ रही थीं, मानो फर्श उनके पैरों के नीचे से खिसक रहा हो। दीवारों पर लटकी तस्वीरें अचानक से गिरने लगीं, और हर तरफ से चीखने-चिल्लाने की आवाजें गूंज उठीं।
"क्या ये वही यात्री हैं, जो इस ट्रेन में मारे गए थे?" मनीष ने डरते हुए पूछा।
"हो सकता है," राघव ने जवाब दिया, "लेकिन हमें इस ट्रेन की सच्चाई का पता लगाना होगा।"
जैसे ही वे अगले डिब्बे में पहुंचे, दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। धड़ाम! सबकी सांसें थम गईं।
"अब क्या करेंगे?" नीलिमा ने कांपते हुए कहा।
"यही है नर्क का दरवाज़ा," आत्मा की आवाज़ फिर से गूंज उठी। "जो भी इसमें दाखिल होता है, उसकी आत्मा हमेशा के लिए इसमें कैद हो जाती है।"
"हमें पीछे हटना चाहिए," मनीष ने कहा।
लेकिन तभी, एक अदृश्य शक्ति ने चारों को उस दरवाजे की ओर खींचना शुरू कर दिया।
नहीं!" राघव ने चिल्लाते हुए खुद को उस अदृश्य ताकत से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन उस शक्ति ने उसे और उसके दोस्तों को इतनी मजबूती से जकड़ लिया था कि वे हिल भी नहीं पा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी अदृश्य जाल में फंस गए हों, जो धीरे-धीरे उन्हें खींचते हुए उस भयानक दरवाजे के पास ले जा रहा था।
"ये... ये हमें कहाँ ले जा रही है?" नीलिमा ने डर के मारे कांपते हुए पूछा। उसकी आवाज़ घुटी हुई थी, मानो गला किसी ने दबा रखा हो।
"शायद... ये हमें नर्क में खींचने की कोशिश कर रही है!" शेखर ने कांपते हुए कहा। उसकी आंखें खौफ से चौड़ी हो चुकी थीं और चेहरा पसीने से भीग गया था।
राघव ने अपने चारों ओर देखा। दरवाजे के उस पार, एक भयानक दृश्य दिखाई दे रहा था – एक आग की झील, जिसमें हज़ारों आत्माएं तड़प रही थीं। वे जलती हुई चीखें मार रही थीं, मदद की गुहार लगा रही थीं, लेकिन वहाँ कोई नहीं था जो उनकी सुन सके।
"हमें कुछ करना होगा, वरना हम सब इस नरक में हमेशा के लिए फंस जाएंगे!" राघव ने हिम्मत जुटाकर कहा। उसने अपने पैरों को ज़मीन पर जमाने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने ऐसा किया, फर्श अचानक गायब हो गया। अब वे सब उस दरवाजे के पास हवा में लटके हुए थे, और निचे सिर्फ एक काली गहराई थी।
तभी, आत्मा की हँसी चारों ओर गूंज उठी। "तुम लोग इस ट्रेन का रहस्य जानना चाहते थे न? तो देखो, ये है तुम्हारा अंजाम। ये दरवाजा तुम सबको उस जगह ले जाएगा, जहाँ से कोई कभी वापस नहीं आ सका।"
"हम... हमसे क्या गलती हुई? हम तो बस इस ट्रेन के बारे में जानना चाहते थे!" मनीष ने डरते हुए कहा।
"तुम लोगों की गलती ये है कि तुमने इस ट्रेन के शापित रास्ते पर कदम रखा। ये ट्रेन सिर्फ उन आत्माओं के लिए है, जिन्होंने अपने जीवन में भयानक पाप किए हैं। और अब, तुम सब भी इसका हिस्सा बन चुके हो।" आत्मा की आवाज़ में एक अजीब-सी खुशी और क्रूरता थी।
हमने तो कोई पाप नहीं किया!" शेखर ने चिल्लाते हुए कहा।
"शायद तुम्हें लगता है कि तुमने नहीं किया," आत्मा ने कहा, "लेकिन इस ट्रेन में जो भी आता है, उसे उसके पापों का सामना करना पड़ता है।"
तभी, दरवाजा धीरे-धीरे और चौड़ा होने लगा। आग की लपटें और ऊँची उठने लगीं। अचानक, एक जोरदार आवाज़ आई और दरवाजे के उस पार एक और दृश्य दिखाई देने लगा – वो वही सुरंग थी, जहाँ से वे सब ट्रेन में चढ़े थे।
"वो... वो देखो! हमें वापस जाने का रास्ता मिल गया!" नीलिमा ने खुशी से कहा।
"नहीं, ये सिर्फ एक भ्रम है। ये दरवाजा तुम्हें धोखा दे रहा है।" आत्मा ने चिल्लाते हुए कहा, "अगर तुम इसमें कूदे, तो तुम्हारी आत्मा हमेशा के लिए नर्क में कैद हो जाएगी!"
लेकिन मनीष ने आत्मा की बात को अनसुना करते हुए दरवाजे की ओर छलांग लगा दी। बाकी तीनों ने देखा कि जैसे ही मनीष ने छलांग लगाई, वो सुरंग में नहीं पहुंचा, बल्कि हवा में गायब हो गया, और उसकी चीखें चारों ओर गूंजने लगीं।
"नहीं! मनीष... मनीष!" नीलिमा चिल्लाई। उसके चेहरे पर खौफ और निराशा थी। "हमें यहाँ से कैसे निकलना होगा?"
"मैंने कहा था, तुम सब मरोगे!" आत्मा की हंसी और तेज़ हो गई। "अब कोई तुम्हें नहीं बचा सकता।"
"राघव, हमें कुछ करना होगा," शेखर ने कहा, "अगर हम ऐसे ही खड़े रहे, तो ये ट्रेन हमें भी निगल जाएगी।"
राघव ने सोचने की कोशिश की, लेकिन उस अंधकार और भयानक दृश्यों के बीच, उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। तभी, उसकी नजर इंजन के एक कोने पर पड़ी, जहाँ एक अजीब-सी मशीन लगी थी।
"शायद... शायद वो मशीन इस दरवाजे को बंद कर सके!" राघव ने कहा, "हमें उस मशीन तक पहुंचना होगा।
लेकिन वो इतनी दूर है, और अगर हम फिसल गए तो सीधे इस नर्क में जा गिरेंगे!" नीलिमा ने कहा।
"हमें कोशिश करनी होगी।" राघव ने धीरे-धीरे अपने हाथों को बढ़ाते हुए उस मशीन की ओर खिसकना शुरू किया। जैसे ही उसने मशीन को छूने की कोशिश की, एक जोरदार बिजली का झटका लगा और वो पीछे गिर पड़ा।
"तुम्हें लगता है, तुम इस ट्रेन से बाहर निकल सकते हो?" आत्मा की आवाज़ और क्रूर हो गई। "ये ट्रेन तुम्हारी मौत की जगह है।"
राघव ने हिम्मत जुटाई और फिर से मशीन की ओर हाथ बढ़ाया। इस बार, उसने मशीन का एक लीवर खींचा। तभी, दरवाजे से एक जोरदार धमाका हुआ और दरवाजा धीरे-धीरे बंद होने लगा।
"नहीं! तुम ये दरवाजा बंद नहीं कर सकते!" आत्मा ने चिल्लाते हुए कहा। "तुम सब यहीं मरोगे!"
लेकिन राघव ने लीवर को और जोर से खींचा। दरवाजे के बंद होते ही, इंजन के अंदर का अंधेरा धीरे-धीरे गायब होने लगा। चारों ओर की आवाजें शांत हो गईं, और ट्रेन की रफ्तार धीमी होने लगी।
नीलिमा, शेखर और राघव ने राहत की सांस ली, लेकिन तभी, ट्रेन के अंदर का माहौल एक बार फिर से बदल गया। इंजन के दरवाजे के पास से एक और दरवाजा खुला, और उस दरवाजे के अंदर से एक भयानक दृश्य सामने आया – वहाँ खून से सना हुआ एक कमरा था, जिसमें हजारों आत्माएं कैद थीं। हर आत्मा की आँखों में दर्द और पीड़ा थी, और वे सब एक ही दिशा में देख रही थीं।
"ये... ये क्या है?" नीलिमा ने कांपते हुए कहा।
"ये वो आत्माएं हैं, जिन्होंने इस ट्रेन में जान गंवाई है।" राघव ने धीरे से कहा। "शायद... शायद यही इस ट्रेन का असली राज़ है।"
तुम सही कह रहे हो," एक धीमी, लेकिन गहरी आवाज़ ने उनका ध्यान खींचा। वो आवाज़ किसी और की नहीं, बल्कि ट्रेन के कंडक्टर की थी, जो अचानक उनके सामने प्रकट हुआ।
"तुम कौन हो?" राघव ने पूछा।
"मैं इस ट्रेन का रक्षक हूँ। इस ट्रेन में जो भी आता है, वो अपने पापों का सामना करता है। ये आत्माएं भी उन्हीं पापों की सज़ा भुगत रही हैं। और अब, तुम्हारी बारी है।" कंडक्टर की आंखें चमक उठीं और उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी कुटिलता थी।
"लेकिन हमने तो कोई पाप नहीं किया!" शेखर ने चिल्लाते हुए कहा।
"नहीं?" कंडक्टर ने हंसते हुए कहा। "क्या तुम्हें सच में लगता है कि तुम निर्दोष हो?"
कंडक्टर ने एक शीशा उनके सामने किया। शीशे में उनका अक्स नहीं, बल्कि उनका असली रूप दिखाई दिया – राघव ने एक बार अपनी जान बचाने के लिए किसी को मरने के लिए छोड़ दिया था; नीलिमा ने अपने स्वार्थ के कारण एक निर्दोष की जान ले ली थी; और शेखर ने किसी की जिंदगी बर्बाद की थी।
"नहीं... ये सच नहीं हो सकता!" नीलिमा ने चिल्लाते हुए कहा।
"तुम सबने अपने-अपने पाप किए हैं। और यही इस ट्रेन का राज़ है। ये ट्रेन उन पापियों की आत्माओं को समेटने के लिए है, जिन्होंने कभी किसी न किसी का जीवन बर्बाद किया है। और अब, तुम्हारा अंजाम भी वही होगा।" कंडक्टर ने अपनी भयानक हंसी के साथ कहा।
राघव, नीलिमा और शेखर को अचानक एहसास हुआ कि वे इस ट्रेन से कभी नहीं निकल सकते। वे सब अपने-अपने पापों की सजा भुगतने के लिए इस ट्रेन के शापित यात्रियों में शामिल हो चुके थे।
ट्रेन ने एक जोरदार झटका लिया और फिर से सुरंग में गायब हो गई, अपने साथ तीन नई आत्माओं को लेकर – जो अब हमेशा के लिए इस भूतिया ट्रेन का हिस्सा बन चुकी थीं।
अंत
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि पाप और बुराई से कोई नहीं बच सकता, चाहे इंसान कितना भी कोशिश कर ले, उसके किए गए गलत कार्य एक न एक दिन उसके सामने आ ही जाते हैं। राघव, नीलिमा, और शेखर ने वर्षों पहले अपने स्वार्थ और लालच के कारण मासूम लोगों की जान ली, लेकिन भूतिया ट्रेन ने उन्हें उनके कर्मों का ऐसा भयावह परिणाम दिखाया जिससे वे चाहकर भी बच नहीं पाए। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में सही मार्ग पर चलना, सच्चाई का साथ देना, और कभी भी किसी का बुरा न करना ही सबसे बड़ा धर्म है। कर्मों का चक्र हमेशा घूमता रहता है और जब वो लौटता है, तो उसका सामना करना बहुत ही कठिन होता है। इसीलिए, अपने जीवन को सदैव पवित्र और सही रास्ते पर रखने की कोशिश करें, क्योंकि पाप चाहे कितना भी छुपा हो, उसका हिसाब एक दिन अवश्य होता है।
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