गर्मी की उस दोपहर में अदालत के कमरे में पसीने की गंध और तनाव की घुटन महसूस हो रही थी। जिया, जिसे अपने परिवार और समाज में एक इज्ज़तदार लड़की माना जाता था, कटघरे में खड़ी थी। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उसके चेहरे पर दृढ़ता की झलक थी। दूसरी तरफ, अज़ल बैठे हुए उसे एक ठंडी निगाहों से देख रहा था। अज़ल का चेहरा दिखाने को तैयार था कि उसे किसी बात का कोई अफसोस नहीं था। अदालत में चारों तरफ खामोशी थी, लेकिन उस खामोशी में जिया की धड़कनें और अज़ल की खामोश नफरत गूंज रही थी।
कुछ हफ्ते पहले की बात थी। जिया ने अनजाने में एक गलत कदम उठाया था। उसने अज़ल को कुछ ऐसा करते देखा था जो कानूनी और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण से गलत था। वह अपने साहस के बल पर पुलिस में उसकी शिकायत करने चली गई थी, लेकिन उसे ये नहीं पता था कि उसकी ये छोटी सी कार्रवाई उसके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगी।
जब पुलिस ने अज़ल को गिरफ्तार किया, तब वह पूरी तरह से आश्वस्त थी कि उसने सही किया है। लेकिन, अज़ल की गिरफ्तारी के बाद उसके अंदर की नफरत और पागलपन ने उसे और खतरनाक बना दिया था। जिया को यह आभास नहीं था कि अज़ल के भीतर एक अंधकार था, एक जिन्न, जो उसकी हर बुरी हरकत का कारण था।
अदालत में जिया ने अपनी शिकायत को पूरे साहस से पेश किया। उसने जज को बताया, "मुझे अज़ल के बारे में कुछ पता नहीं था। मैंने उसे एक गलत काम करते हुए देखा और सोचा कि यह मेरा कर्तव्य है कि मैं कानून की मदद लूं। मैं नहीं जानती थी कि मेरा ये कदम मेरी ज़िन्दगी को इस कदर बदल देगा।"
जज ने उसकी बात ध्यान से सुनी। वह अज़ल की ओर मुड़े, जिसने एक उपेक्षापूर्ण हंसी के साथ जवाब दिया, "मैंने कुछ भी गलत नहीं किया। यह सब एक गलतफहमी है। और अगर इसने मुझे अदालत तक खींच ही लिया है, तो इसका अंजाम इसे भुगतना होगा।"
जिया का दिल धड़कने लगा। उसे समझ में आ रहा था कि अज़ल इस मामले को अपने तरीके से मोड़ने की कोशिश कर रहा है। उसके हर शब्द में एक खतरनाक इरादा छिपा था।
जज ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपनी गहरी आवाज में फैसला सुनाया। "इस मामले में, दोनों की गलती नजर आती है। अज़ल ने जो किया है, वह गलत है, लेकिन जिया ने भी उसे समाज के सामने लाने में अपनी जिम्मेदारी निभाई। कानून के अनुसार, जिसने किसी की इज्ज़त को लूटा है, उसे अब उस इज्ज़त को वापस देना होगा।"
कमरे में अचानक सन्नाटा छा गया।
"इस अदालत का आदेश है कि अज़ल और जिया की शादी करवाई जाए," जज ने ठंडी आवाज में कहा।
यह सुनते ही जिया की आंखों में आँसू उमड़ पड़े। उसका दिल जैसे चूर-चूर हो गया हो। उसकी सांसें तेज हो गईं। "क्या यह सच है? क्या मुझे इस आदमी के साथ जीवन बिताना पड़ेगा?" उसके मन में यही सवाल गूंज रहा था।
फैसले के बाद, जिया ने अपनी हिम्मत जुटाई और पुलिस की मदद लेने का फैसला किया। वह अपने वकील के पास गई और अपनी समस्या बताई। "मैं इस आदमी के साथ नहीं रह सकती। वह खतरनाक है।"
वकील ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "यह मामला अब और गंभीर हो चुका है। हम पुलिस के माध्यम से इसे रोकने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन अदालत का आदेश बहुत सख्त है।"
जिया ने पुलिस से संपर्क किया, और अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की तैयारी करने लगी। पुलिस ने अज़ल को दोबारा गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अज़ल का चेहरा इस बार भी शांत था। उसके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था। उसके अंदर का जिन्न उसकी सोच को और अंधकारमय बना रहा था।
अज़ल जेल में भी बैठा-बैठा यही सोच रहा था कि अब उसे बाहर आने का रास्ता सिर्फ एक है—शादी। उसके भीतर का जिन्न हर पल उसे उकसा रहा था, "यह शादी ही तेरा रास्ता है। बाहर निकल और उन सभी को खत्म कर, जिन्होंने तुझे यहां तक पहुंचाया।"
अदालत ने शादी की तारीख तय कर दी थी। यह सब जिया के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। वह इस शादी से बचने के लिए हर संभव कोशिश कर रही थी, लेकिन कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
शादी का दिन था, और जिया ने सफेद लहंगा पहन रखा था। कमरे में हर कोई तनाव महसूस कर रहा था, लेकिन सबसे ज्यादा बोझिल माहौल जिया के दिल में था। वह घबराई हुई थी, उसके कदम भारी थे, और उसकी आँखों में दुख और घबराहट के मिले-जुले भाव थे। वह जानती थी कि यह शादी उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी त्रासदी बनने वाली थी, लेकिन अब कोई रास्ता नहीं था।
जिया और अज़ल निकाह के लिए मंच पर आमने-सामने बैठे थे। मौलवी साहब ने निकाह पढ़वाना शुरू कर दिया था। जिया की नजरें लगातार झुकी हुई थीं, जबकि अज़ल की आंखें उस पर टिकी हुई थीं। जैसे ही मौलवी साहब ने निकाह के पहले सवाल पर हामी भरने के लिए कहा, जिया ने धीरे से "कबूल है" कह दिया। उसकी आवाज़ कांप रही थी, लेकिन उसने अपने भीतर का गुस्सा और दुख दबा रखा था।
निकाह की रस्में पूरी हो चुकी थीं। जैसे ही सबने बधाइयाँ दीं, जिया और अज़ल को अकेले छोड़ दिया गया। कमरे में सन्नाटा था, सिर्फ दोनों की गहरी साँसें सुनाई दे रही थीं। जिया के दिल में नफरत का तूफान उमड़ रहा था, जबकि अज़ल अपनी ठंडी निगाहों से उसे घूर रहा था।
जिया ने चुप्पी तोड़ते हुए धीरे से कहा, "तुम जानते हो, अज़ल, मैं तुमसे कितनी नफरत करती हूँ।"
उसके शब्द जैसे ठंडे बर्फ के टुकड़े थे, जो कमरे की हवा में घुल रहे थे। अज़ल के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई, लेकिन उसकी आँखों में भी वही नफरत झलक रही थी। वह धीरे-धीरे उसके करीब आया। जिया ने एक कदम पीछे लिया, लेकिन उसकी नज़रे अज़ल से हट नहीं पाईं।
अज़ल ने बहुत हल्के से, लगभग फुसफुसाते हुए कहा, "और मैं तुम्हारी नफरत से कितना प्यार करता हूँ।"
जिया का दिल जोर से धड़कने लगा। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, लेकिन वह पीछे नहीं हटी। उनके बीच नफरत की गहरी खाई थी, लेकिन उसी खाई में एक अजीब सा खिंचाव भी था। जिया की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसकी नफरत कम नहीं हुई थी।
अचानक, अज़ल ने धीरे से उसके हाथ को छुआ। जिया ने उसे झटकना चाहा, लेकिन कुछ था जो उसे रोक रहा था। उनकी आँखें एक-दूसरे से टकराईं। अज़ल की निगाहें जिया की नफरत और घबराहट के पार कुछ और तलाश रही थीं, लेकिन जिया की आँखों में अब भी वह गुस्सा और दर्द साफ झलक रहा था।
अज़ल ने उसकी आँखों में गहराई से देखते हुए कहा, "तुम्हारी नफरत मुझे और भी ताकतवर बनाती है, जिया। लेकिन अब तुम मेरी हो, चाहे तुम्हें ये पसंद हो या नहीं।"
जिया ने अपनी साँसें संभालते हुए कहा, "मैं कभी तुम्हारी नहीं हो सकती, अज़ल। मैं तुमसे नफरत करती हूँ... और शायद हमेशा करती रहूँगी।"
अज़ल ने उसकी बात सुनी, लेकिन उसके चेहरे पर वही हल्की मुस्कान थी। वह और करीब आया, उसके चेहरे के पास झुककर उसने धीरे से कहा, "तो फिर इसी नफरत के साथ जी लो। लेकिन याद रखना, नफरत और मोहब्बत के बीच की लाइन बहुत पतली होती है।"
जिया ने अपनी जगह से एक कदम पीछे हटते हुए कहा, "मुझे तुमसे हमेशा नफरत रहेगी, अज़ल।" उसकी आवाज़ कांप रही थी, लेकिन उसकी आँखों में वही सख्ती थी।
अचानक, कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई। उनकी आँखों की टकराहट ने पल भर के लिए सब कुछ रोक दिया। उनके बीच नफरत का रिश्ता था, लेकिन उस पल में कुछ और भी था—एक अनकही खिंचाव, जो दोनों को करीब ला रहा था। दोनों के दिलों में नफरत थी, पर उस नफरत की गर्माहट में कुछ ऐसा था, जिसे वे खुद भी समझ नहीं पा रहे थे।
यह पल सिर्फ एक पल का था, लेकिन उस पल ने जिया को एहसास दिलाया कि अज़ल के साथ उसकी लड़ाई सिर्फ बाहरी नहीं है। वह नफरत और आकर्षण के बीच फंसी हुई थी, और अब उसकी जिंदगी कभी भी पहले जैसी नहीं हो सकती थी।
अज़ल के चेहरे पर एक अजीब सी सुकून की लहर थी। जैसे वह पहले ही यह लड़ाई जीत चुका हो। शादी के बाद, जब वे अकेले कमरे में थे, अज़ल ने धीमे से जिया के कान में कहा, "अब तुम सिर्फ मेरी हो, और तुम्हें मुझसे कोई नहीं बचा सकता।"
जिया का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसे लगा जैसे वह किसी अंधेरी खाई में गिरती जा रही हो। उसकी आंखों में भय और घृणा दोनों ही स्पष्ट थे। उसने सोचा, "क्या यह जीवन है? क्या मुझे हमेशा इस दरिंदे के साथ रहना पड़ेगा?"
लेकिन उसे पता नहीं था कि यह तो सिर्फ शुरुआत थी।
शादी के बाद, अज़ल और जिया के बीच नफरत और डर का खेल और भी तेज़ हो गया। अज़ल पर जिन्न की पकड़ और मजबूत होती जा रही थी, और वह अब जिया को पूरी तरह से अपने वश में करने के लिए तैयार था। जिन्न उसकी हर बुरी हरकत को और उग्र बना रहा था, और जिया हर दिन इस सोच के साथ जी रही थी कि वह इस अंधकार से कैसे बाहर निकलेगी।
शादी के कुछ दिन बाद, जिया को एहसास होने लगा कि अज़ल में कुछ असामान्य है। वह हमेशा गुस्से में रहता, उसकी हरकतें अचानक बदल जातीं, और वह कभी-कभी ऐसे बातें करता जो इंसान की नहीं लगती थीं। अज़ल की आँखों में कभी-कभी एक अजीब सी चमक दिखाई देती थी, जैसे कोई और उसके शरीर के अंदर से देख रहा हो।
एक रात, जिया को नींद नहीं आ रही थी। वह घर के हॉल में बैठी थी, जब उसे अज़ल की बुदबुदाहट सुनाई दी। पहले तो उसने इसे नजरअंदाज किया, लेकिन फिर वह आवाज़ गहरी और भयानक होती चली गई। उसने अज़ल को देखा—वह अपने कमरे में अकेले बैठा था, लेकिन उसकी बातें किसी और से हो रही थीं। उसकी आवाज़ में कुछ और था, कुछ ऐसा जिसे सुनकर जिया के रोंगटे खड़े हो गए। अज़ल की बातें किसी अज्ञात भाषा में थीं, जो इंसान के लिए अजीब और डरावनी लग रही थीं।
जिया ने खुद को संभालते हुए दरवाजे के पास जाकर सुना।
"तू मुझे क्यों रोक रहा है?" अज़ल गुस्से से चीख रहा था। "यह मेरी जिन्दगी है, मुझे वैसे ही जीने दे जैसे मैं चाहता हूँ।"
फिर वह शांत हो गया, जैसे किसी ने उसे डांट दिया हो। उसकी आँखें अचानक लाल हो गईं और उसकी सांसें तेज़ होने लगीं। अज़ल का चेहरा भयंकर गुस्से में बदल गया, लेकिन उसकी आँखों में डर की एक झलक भी थी। जैसे वह किसी से लड़ने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन हार रहा हो।
अचानक, उसने अपना सिर घुमा कर जिया की तरफ देखा। उसकी नजरें सीधी जिया पर थीं, लेकिन वो आँखें अज़ल की नहीं थीं। वो आँखें कुछ और ही बयां कर रही थीं, कुछ ऐसा जो जिया ने पहले कभी नहीं देखा था।
"तू मुझे देख रही है?" अज़ल ने एक भयंकर, गहरे स्वर में पूछा। उसकी आवाज़ अब सामान्य नहीं थी।
जिया कांपते हुए पीछे हट गई। उसे अब पूरी तरह से यकीन हो गया था कि अज़ल पर किसी बुरी ताकत का साया है। उसके अंदर कुछ था, जो इंसानी नहीं था।
अगले दिन, जिया ने अपने परिवार के एक पुराने दोस्त, जो कि एक मौलवी थे, से मिलने का फैसला किया। वह उनसे इस बारे में खुलकर बात नहीं कर पाई, लेकिन उसने उन्हें बताया कि अज़ल में कुछ अजीब हो रहा है। मौलवी ने जिया को एक तावीज़ दिया और कहा, "इसको अज़ल के पास रखो और देखते रहो। अगर उसके ऊपर कोई बुरी ताकत का साया है, तो यह तावीज़ उसकी असलियत को सामने लाएगा।"
जिया ने मौलवी की सलाह मानी। उसने चुपके से तावीज़ को अज़ल के कमरे में रख दिया। कुछ ही दिनों में, अज़ल और भी ज्यादा बेचैन और गुस्सैल हो गया। वह अक्सर अपने आप से बात करता, दीवारों को घूरता, और रातों को नींद में चीखता।
एक रात, तावीज़ के असर से अज़ल अचानक जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसने कमरे के कोने में बैठकर खुद से बातें करनी शुरू कर दीं, जैसे कोई उससे कुछ कह रहा हो। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा था, "मुझे छोड़ दो! मैं अब और नहीं कर सकता!"
जिया दरवाजे के पास खड़ी सब देख रही थी। उसकी आँखों में खौफ था, लेकिन अब उसे समझ आ चुका था कि अज़ल के अंदर कोई और है—एक जिन्न, जो उसे अंदर से पूरी तरह से नियंत्रित कर रहा है।
वह जानती थी कि अब उसकी लड़ाई सिर्फ अज़ल से नहीं है, बल्कि उस अंधेरे से भी है, जिसने अज़ल की आत्मा को अपनी गिरफ्त में ले लिया था।
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