कहानी की शुरुआत एक नीलामी से होती है। यह नीलामी बहुत ही खास होती है, जिसमें एक पुराना शीशा भी शामिल होता है, जिसकी हकीकत से हर कोई अनजान होता है। नीलामी के हॉल में हलचल है, लोग अपने-अपने मनपसंद चीजों को खरीदने की होड़ में हैं। वही, कोने में एक बड़ा शीशा ढका हुआ खड़ा है, जिस पर हल्का सा धूल जमी हुई है।
"शिवा, क्या इस शीशे के बारे में तुमने मालिक को कुछ बताया?" नीलामी कंपनी के मालिक की सेक्रेटरी, अनुशा, चिंतित नज़र आती है।
"अरे अनुशा, तुम भी न... इसमें कुछ खास नहीं है। ये बस एक पुराना शीशा है, जो ब्रिटिश जमाने का है।" शिवा नज़रें चुराकर जवाब देता है।
अनुशा का चेहरा गंभीर हो जाता है, "मुझे लगता है हमें इस शीशे की पूरी सच्चाई बतानी चाहिए। ये शीशा आम नहीं है। इससे जुड़ी कहानियाँ बहुत डरावनी हैं।"
शिवा ठंडी सांस लेकर कहता है, "हमें सच्चाई से क्या लेना-देना? हमें बस मुनाफा चाहिए। ये नीलामी है, डर की कोई जगह नहीं है यहाँ।"
तभी एक आदमी, विक्रम, गलती से उस शीशे को देखता है और उसकी ओर खिंचता चला जाता है। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ जाती है, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे खींच लिया हो। नीलामी का माहौल अचानक से ठहर सा जाता है।
"यह शीशा मेरे लिए," विक्रम ने ऊँची आवाज़ में कहा।
नीलामी की गहरी आवाज़ गूंजती है, "किया गया सौदा! यह शीशा अब श्री विक्रम का है।"
विक्रम शीशे को खरीद लेता है और उसे अपने घर ले आता है, लेकिन उसे यह एहसास नहीं था कि उसने अपने लिए मौत का दरवाज़ा खोल लिया है।
जब विक्रम शीशे को घर लाता है, तो उसकी पत्नी काव्या थोड़ी चौंक जाती है।
"ये पुराना शीशा कहाँ से लाए हो?" काव्या ने पूछा।
विक्रम मुस्कराते हुए बोला, "नीलामी में खरीदा है। यह ब्रिटिश काल का है, बहुत पुराना और कीमती।"
काव्या उसे घूरते हुए कहती है, "पुराना है, पर यह अजीब सा लगता है। इसे यहाँ क्यों लाए हो?"
विक्रम हँसते हुए बोला, "तुम भी न, हर चीज़ में कुछ गलत देखती हो। यह सिर्फ एक शीशा है।"
काव्या ने न चाहते हुए भी बात मान ली, लेकिन उसके अंदर कुछ अजीब सा एहसास था।
रात के समय, जब विक्रम अपने कमरे में अकेला था, उसने अचानक से शीशे की ओर देखा। उसे अपनी ही परछाई दिखाई दी, लेकिन कुछ अलग था। परछाई हंस रही थी, उसकी आँखें लाल हो गई थीं। विक्रम ने झटके से पीछे हटकर देखा, लेकिन शीशा सामान्य था।
"यह क्या था?" उसने खुद से पूछा।
अगले कुछ दिनों में, विक्रम के व्यवहार में बदलाव आने लगा। वह पहले जैसा शांत और खुशमिजाज नहीं रहा। वह अक्सर शीशे के सामने खड़ा होकर खुद से बातें करता। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह किसी और ही दुनिया में चला गया हो।
काव्या ने विक्रम के इस अजीब व्यवहार को नोटिस किया और एक रात उसने विक्रम को शीशे के सामने खड़े देखा। विक्रम का चेहरा गुस्से और नफरत से भरा हुआ था, और वह खुद से बातें कर रहा था।
"तुम मुझे रोक नहीं सकते... तुम सब मुझसे डरते हो... मैं सबको खत्म कर दूँगा..." विक्रम जोर से चिल्लाया।
काव्या डर के मारे पीछे हट गई। उसने विक्रम को हिलाते हुए कहा, "विक्रम, क्या हो रहा है? तुम किससे बात कर रहे हो?"
विक्रम ने उसकी ओर घूरते हुए कहा, "तुम नहीं समझोगी। ये शीशा... ये सच्चाई दिखाता है। अब मैं वो देख सकता हूँ, जो बाकी लोग नहीं देख सकते।"
काव्या के रोंगटे खड़े हो गए। "तुम्हें इस शीशे से दूर रहना चाहिए," उसने डरते हुए कहा।
लेकिन विक्रम ने उसे धक्का देकर कहा, "तुम मुझे रोक नहीं सकती। अब मैं इस दुनिया से ऊपर हूँ।"
अगले दिन, काव्या पूरी तरह से उलझन और डर में थी। विक्रम के व्यवहार और शीशे के खौफनाक असर ने उसे परेशान कर रखा था। वह समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करे। तभी उसे नीलामी के समय विक्रम द्वारा लाए गए दस्तावेज़ याद आए।
वह तेजी से विक्रम की स्टडी रूम में गई, जहाँ उसने नीलामी के पेपर ढूंढने शुरू किए। उन दस्तावेज़ों में नीलामी की पूरी जानकारी थी—कौन-कौन सी चीज़ें बेची गई थीं, किसके द्वारा, और कहाँ से खरीदी गई थीं। वहीं उसे नीलामी कंपनी का नाम और फोन नंबर मिला।
उसने बिना समय गवांए तुरंत नीलामी कंपनी को फोन किया। फोन उठाने वाले ने उसका कॉल अनुशा को ट्रांसफर कर दिया, क्योंकि अनुशा उस शीशे की देखरेख करने वाली थी।
"हैलो, मैं अनुशा बोल रही हूँ। आप कौन?" अनुशा ने जवाब दिया।
काव्या ने तेजी से कहा, "मैं काव्या हूँ। मेरे पति विक्रम ने उस पुरानी नीलामी से एक शीशा खरीदा था, और अब उसका व्यवहार बहुत अजीब हो गया है। मुझे लगता है कि वह शीशा कुछ ठीक नहीं है। आप इसके बारे में कुछ जानती हैं?"
अनुशा के चेहरे की रंगत बदल गई। वह समझ गई कि शीशे ने फिर किसी को अपने जाल में फँसा लिया है। उसने गहरी साँस लेते हुए कहा, "हाँ, मैं जानती हूँ... वो शीशा साधारण नहीं है। हमें मिलकर इस समस्या का हल निकालना होगा।"
"यह वही शीशा है, जिसे ब्रिटिश अफसर इस्तेमाल करते थे," अनुशा ने बताया। "जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी जाती थी, तो उन्हें इस शीशे के सामने खड़ा किया जाता था। वे अपनी मौत को अपनी आँखों से देख सकते थे। उनकी आत्माएं इस शीशे में कैद हो गईं और अब वे उन लोगों को शैतान बना रही हैं, जो इसमें देखते हैं।"
काव्या का दिल दहल गया। "तो क्या विक्रम भी अब उनके चंगुल में है?" उसने कांपते हुए पूछा।
अनुशा ने सिर हिलाया, "हाँ, यह शीशा उन सभी को शैतान बना देता है, जो इसमें देखते हैं। तुम्हें जल्दी ही कुछ करना होगा, वरना विक्रम भी पूरी तरह बदल जाएगा।
विक्रम अब पूरी तरह से उस शीशे के कब्ज़े में था। उसकी आँखें हमेशा लाल रहतीं, वह किसी से भी बात करने को तैयार नहीं था। वह पूरे दिन शीशे के सामने बैठा रहता और उसे घूरता रहता।
एक रात, काव्या ने देखा कि विक्रम अपने कमरे में कुछ बड़बड़ा रहा था। "अब समय आ गया है... मैं सभी को खत्म कर दूँगा..." उसकी आवाज़ में अजीब सी गूँज थी, जैसे वह इंसान नहीं बल्कि कोई और ही हो।
काव्या ने हिम्मत जुटाकर शीशे को तोड़ने की योजना बनाई। उसने एक हथौड़ा उठाया और विक्रम के कमरे की ओर बढ़ी। जैसे ही वह शीशे के करीब पहुँची, विक्रम ने उसे पकड़ लिया और कहा, "तुम इस शीशे को नहीं छू सकती। यह मेरी ताकत है!"
काव्या ने साहस से कहा, "यह शीशा तुम्हें बर्बाद कर रहा है, विक्रम! तुम्हें इसे छोड़ना होगा!"
लेकिन विक्रम अब वह विक्रम नहीं था। उसकी आँखों में सिर्फ नफरत थी। वह काव्या की ओर झपटा, लेकिन काव्या ने शीशे पर जोर से प्रहार कर दिया। शीशा टूट गया और उसके साथ ही विक्रम भी ज़मीन पर गिर पड़ा।
शीशे के टूटते ही कमरे में अजीब सी सन्नाटा छा गया। विक्रम बेहोश पड़ा था, और काव्या की साँसें तेज़ चल रही थीं। वह समझ गई थी कि यह शीशा अब कभी किसी को शैतान नहीं बना सकेगा।
विक्रम अंत में ठीक हो जाता है, लेकिन यह उसकी पत्नी काव्या की हिम्मत और शीशे को तोड़ने की कोशिश के बाद ही संभव हो पाता है। जब काव्या ने उस खतरनाक शीशे को तोड़ा, तो शीशे के साथ विक्रम पर जो बुरी ताकत हावी थी, वह भी खत्म हो गई। विक्रम बेहोश हो गया था, लेकिन शीशा टूटने के बाद उसकी हालत सुधरने लगी।
हालांकि, विक्रम इस अनुभव के बाद गहरे सदमे में चला गया, और उसे पूरी तरह ठीक होने में समय लग सकता है। इस घटना ने विक्रम और काव्या दोनों को समझा दिया कि वह शीशा सिर्फ एक वस्तु नहीं था, बल्कि बुरी आत्माओं और अतीत की भयंकर घटनाओं का प्रतिबिंब था।
निष्कर्ष
यह कहानी बताती है कि किस तरह अतीत की खौफनाक घटनाएँ वर्तमान को भी प्रभावित कर सकती हैं। वह शीशा, जो ब्रिटिश अफसरों के अत्याचारों का गवाह था, आज भी लोगों को शैतान बना रहा था। हालांकि, काव्या ने अपने साहस से उस डरावने शीशे का अंत कर दिया, लेकिन उस शीशे की सच्चाई ने हर किसी के दिल में खौफ पैदा कर दिया, जो उसे जानता थ
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