रात का समय था, करीबन 11:30 बज रहे थे। मुंबई की वो सड़क जो दिन में भीड़भाड़ से भरी रहती थी, इस वक्त बिल्कुल खाली पड़ी थी। उस सुनसान सड़क पर एक अकेली लड़की तेज़ क़दमों से चल रही थी। उसका नाम था नेहा, उम्र 25 साल। आज ऑफिस में बहुत काम बढ़ गया था, और उसे अपने बॉस की वजह से देर हो गई थी। वह बार-बार अपने फोन की ओर देख रही थी, शायद किसी उम्मीद में कि किसी से बात कर पाए। नेहा (मन में): "काश मैंने मम्मी को कॉल कर लिया होता। ये रास्ता आज कुछ अजीब सा लग रहा है। न कोई आदमी दिख रहा है, न कोई गाड़ी... और ये अजीब सा सन्नाटा!" चारों तरफ अजीब सी खामोशी थी। जैसे कोई छिपा हुआ खतरा उसे घूर रहा हो। नेहा की धड़कनें तेज हो गईं। उसे महसूस हो रहा था कि कोई पीछे-पीछे चल रहा है, पर जब भी वह मुड़कर देखती, कोई नहीं होता। नेहा (मन में): "ये सब मेरा वहम होगा। मुंबई में इस तरह डरने की कोई जरूरत नहीं है।" तभी, उसे एक पुरानी सी रिक्षा आती हुई दिखाई दी। नेहा ने उसे हाथ देकर रुकने का इशारा किया। रिक्षा रुकी, और नेहा फटाफट उसमें बैठ गई। नेहा: "भाईया, वाशी जाना है।" रिक...
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