कहानी की शुरुआत एक नीलामी से होती है। यह नीलामी बहुत ही खास होती है, जिसमें एक पुराना शीशा भी शामिल होता है, जिसकी हकीकत से हर कोई अनजान होता है। नीलामी के हॉल में हलचल है, लोग अपने-अपने मनपसंद चीजों को खरीदने की होड़ में हैं। वही, कोने में एक बड़ा शीशा ढका हुआ खड़ा है, जिस पर हल्का सा धूल जमी हुई है। "शिवा, क्या इस शीशे के बारे में तुमने मालिक को कुछ बताया?" नीलामी कंपनी के मालिक की सेक्रेटरी, अनुशा, चिंतित नज़र आती है। "अरे अनुशा, तुम भी न... इसमें कुछ खास नहीं है। ये बस एक पुराना शीशा है, जो ब्रिटिश जमाने का है।" शिवा नज़रें चुराकर जवाब देता है। अनुशा का चेहरा गंभीर हो जाता है, "मुझे लगता है हमें इस शीशे की पूरी सच्चाई बतानी चाहिए। ये शीशा आम नहीं है। इससे जुड़ी कहानियाँ बहुत डरावनी हैं।" शिवा ठंडी सांस लेकर कहता है, "हमें सच्चाई से क्या लेना-देना? हमें बस मुनाफा चाहिए। ये नीलामी है, डर की कोई जगह नहीं है यहाँ।" तभी एक आदमी, विक्रम, गलती से उस शीशे को देखता है और उसकी ओर खिंचता चला जाता है। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक...
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