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साए का इश्क़-4

  सुबह की शुरुआत रात के उन अनकहे पलों को याद करके जिया के होंठों पर हल्की मुस्कान आ गई। पहली बार उसे अज़ल का चेहरा मासूम लगा। वह उसे कुछ देर तक देखती रही, जैसे किसी अनजाने एहसास को समझने की कोशिश कर रही हो। लेकिन यह एहसास कितना सही था, वह नहीं जानती थी। वह धीरे से बिस्तर से उठी और किचन की तरफ बढ़ गई। किचन में हल्की रोशनी थी। सुबह की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी। जिया ने गैस जलाया और नाश्ता बनाने लगी। "तुम्हें यह सब करने की जरूरत नहीं है," अज़ल की भारी आवाज़ उसके पीछे से आई। जिया ने पलटकर देखा। वह अब तक सोया हुआ था, लेकिन अब उसकी आँखों में हल्की सी जिज्ञासा थी। "मुझे अच्छा लगता है," जिया ने हल्के से कहा। "तुमने नाश्ता किया?" "तुम नौकरों को क्यों नहीं बुलाती?" अज़ल ने कहा, उसकी आवाज़ में अभी भी वही कठोरता थी। "क्योंकि मैं चाहती हूँ कि यह नाश्ता खास हो," जिया ने हल्के से मुस्कुराते हुए जवाब दिया। अज़ल ने पहली बार महसूस किया कि जिया की मुस्कान में एक अजीब सा सुकून था, जो नफरत और दर्द से परे था। अंधेरा जो फिर से जागा दिन स...